एक बार फिर लिखते हुए अच्छा महसूस कर रहा हूँ, हालाँकि लिखने का मन होता ही तभी है जब अच्छा महसूस न हो .
अगर आप ये पढ़ रहे हो या पढना चाहते हो तो बता दूँ ये कोई कहानी नहीं, कोई कल्पना नहीं, नहीं कोई सलीके से लिखी आत्मकथा है. जो भी मन में है वो बस में लिखता जा रहा हूँ.
तो चाहो तो नज़रअंदाज कर सकते हो, ये निर्णय मैं आप पर ही छोड़ता हूँ.
वेसे भी मुझे लगभग 2 साल हो चुके हैं, एक दो लिखी कविताओं को छोड़ कर ज्यादा कुछ नहीं लिख सका हूँ. क्या पता अब में सलीके से लिख भी पाऊं या नहीं. पर इसकी परवाह किसे है.
वीरवर का दिन बस अंतिम कुछ घड़ियाँ गिन रहा है और मार्च का महीना बस शुरू ही हुआ है. जाहिर है, एक हफ्ता पहले.
भूतकाल की बात करें तो बहुत सी बातें बहुत सी स्मृतियाँ लिए मेरा मन अभी बस सब छिपाए बेठा है. कमाल की बात तो ये है कि इस नालायक ने आधी बातें मुझसे भी छुपा रखी है.
ये कम्बखत मन भी बहुत अजीब है. न सही से अपनी बात बताता ही है और न कुछ देर शांत होकर बेठता है. एक ही काम है दिन भर हर काम में ऊँगली करना. कई ही दफा ये थोड़े थोड़े संकेत छोड़ता रहता है, मानो किसी दोस्त की तरह चिढ़ा चिढ़ा के रोटी खिला रहा हो. कसम से, ये मात्र मन का मानवीकरण नहीं है. ये सचाई ही मालूम पडती है.
सबका मन सोचता है, हर पहर हर सेकंड, जाने क्या क्या अपने अन्दर ले कर बता रहता है.
चलो, इसे इसके हाल पर छोड़ देते हैं और मैं तुम्हे वो सब बताता हूँ जो मुझे थोडा कुछ समझ में आ गया…
काफी दिन हुए, न कुछ लिखा न कुछ साझा किया. पर शुरुआत तो करनी ही थी.
सब सही चल रहा है, मेरे इन्टरनेट कनेक्शन को छोड़ कर.
मेरा कारोबार, या फिर काम, अभी शुरू ही हुआ है. वैसे शुरू हुए 6 महीने ही हुए हैं या फिर 3 साल. (अब ये बात आप खुद जान लें तो ज्यादा बेहतर होगा, क्यूंकि सचमे मेरा ये लिखने का कतई मन नहीं है)
तो 6 महीने से काम शुरू किया है, हमारा एक ऑफिस है, जहाँ सब मिलकर आधे दिन गप्पे मारते हैं. आरे हाँ, सब नहीं मैं गप्पे मारता हूँ.
बचे हुए आधे दिन थोडा काम भी कर लेता हूँ.
अब ये कहोगे कि बातें क्यों करता हूँ तो मैं इसका उत्तर क्या ही दूँ.
एक वो भी समय था जब मेरे मुंह महाशय एक लव्ज़ भी बोलना को तेयार नहीं होते थे. दर्जन भर किस्से तो मेरी चुप्पी के ही मशहूर हो चले थे. मुझे हैरानी होती है कि मैं कभी किसीसे बात किये बिना चुपचाप अकेले ही अपना ज्यादातर समय बिताना ज्यादा पसंद करता था.
अब बात शुरू हो ही गयी है तो 2 वाकया और कहने में मुझे सचमुच बिलकुल शर्म नहीं आयेगी.
बात तबकी है जब में जवाहर नवोदय विद्यालय कुल्लू (पंडोह, मंडी में) हुआ करता था, विद्यालय का नाम थोडा अटपटा लगे तो इतना समझलो की इसका मतलब कि ज०न० विद्यालय कुल्लू की शुरुआती 3 किश्ते मंडी में ही शुरू की गयी थी, क्योंकि कुल्लू का स्कूल अभी कार्य प्रगति पर था.
तो उस समय मैं एक रहस्यमयी विद्यार्थी हुआ करता था, अब ये मुझे नहीं पता सब क्या सोचते होंगे.
मैं सुबह की हाजिरी के बाद न सोने वाले चंद लोगों में से एक था, चूँकि सुबह की हाजिरी 6 बजे से पहले हो जाती थी जिस समय सभी को तेज़ नींद आ रही होती थी, ज्यादाटार बच्चे उसके बाद फिरसे सो जाते थे.
और जाहिर है, रहस्यमयी प्राणी इस समय में सोते नहीं होंगे, तो मैं बस जल्दी से नहा कर या मुंह धोकर स्कूल की वर्दी लगा कर अपने छात्रवास से निकल जाता था.
7:15 पर हमारा सुबह के खाने का समय था पर मैं 6:30 पर ही शेक्षणिक खंड (Academic Block) पहुँच जाता था. अपनी कक्षा में इस तरह बिताये वो हर मिनट मुझे आज भी याद हैं.
एक अकेला लड़का घंटा भर क्या ही करता होगा. यही तो रहस्य है.
उस समय जाने क्यों मेरी दुनिया ही अलग हुआ करती थी, मैं हर जगह इसी तरह से पहले पहुंचा रहता था. ज्यादा किसीसे मुझे कोई खास लेना देना नहीं था. कक्षा में भी में अपने बेंच पर अकेला ही होता था. अब ये मेरी किस्मत थी या ओरों की नापसन्दी, ये सचमे मुझे नहीं पता.
लेकिन जहाँ तक मुझे लगता हैं, बहुतमत नापसन्दी को तो नहीं मिलेगा.
एक लड़का जो अपनी ही दुनिया में रहता था, बिना ज्यादा किसीसे से बात किये, हमेशा हँसते और खुश दिखता था. शायद मैं वहां एक अलग ही ख़ुशी और अहसास का पहली दफा आनंद ले रहा था, और शायद वो थी “आजादी”.
सबके लिए वो जगह एक कारावास, एक पिंजरे जेसी प्रतीत होती थी पर मेरी स्थिति ही कुछ और थी. वो मेरा खुला असमान था. इसीलिए आज भी अपने सभी सहपाठियों में से शायद सबसे ज्यादा लगाव उस स्कूल से मुझे ही होगा.
अब मैं और ज्यादा कुछ आज कहने के मनोभाव में तो नहीं हूँ. क्योंकि शायद अब मैं तुम्हे उबाने वाला हूँ.
तो मिलते हैं किसी और दिन, जब फिर बात करने का मन हुआ, और समय हुआ.
तुम्हारा __________
अंकुश आनंद
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