नवोदया : एक अनुठे आवासीय विद्यालय की कहानी
लेखक: अंकुश आनंद
अध्याय: 1 : प्रारूप 2
“……. ग्रीकों ने उसे ट्रॉय शहर के मुख्य दरवाजे के पास छोड़ दिया और वापस लौटने का नाटक किया. अगली सुबह ट्रोजन लोगों ने युद्ध भूमि को खाली पाया. ग्रीक कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे थे, गेट के बाहर सिर्फ विशाल ट्रोजन हॉर्स दिख रहा था।
“यह शांति का उपहार है. ग्रीक चले गए.” – ट्रोजन सैनिकों ने जोर से कहा।
“वे हार स्वीकार कर चले गए हैं और यह उपहार छोड़ गए हैं। ” अब ग्रीक उस ट्रोजन हॉर्स को अपने विजय प्रतीक के रूप में देखने लगे. यह उनकी देवी एथेना के लिये एक उपहार है।
उनमें से कुछ ट्रोजन लोग उसे संदेह की नजर से देख रहे थे और उसे जला देना चाहते थे. लेकिन विजय का आनंद ले रहे सैनिकों ने उसकी बात का ध्यान नहीं दिया।
ट्रॉय के विशाल दरवाजे को खोला गया. ट्रोजन हॉर्स को शहर के अन्दर लाया गया और लोग ख़ुशी से आनंद …….”
“अक्षू.. अक्षू !”
“….. मनाने लगे. कई घंटे जश्न मनाने के बाद सभी ट्रोजन सैनिक थक गए………. “
“अक्षू! कहाँ है बेटा। जल्दी से हाथ धो कर खाना खाने आ जा।”
मैंने दरवाजे की ओर मुड़कर जवाब दिया, “मैं अभी आया, मम्मी जी”
मैं कहानी पढ़ने में इतना व्यस्त था कि मुझे दुनिया का ख्याल ही नहीं रहा था। मम्मी जी खाना खाने के लिए बुला रही थी।
“और नींद की आगोश में चले गए. रात के सन्नाटे में ट्रोजन हॉर्स में हलचल हुआ. कुछ ग्रीक सैनिक उससे दबे पाँव बाहर निकले. उन्होंने ट्रॉय पर हमला बोल दिया.
ग्रीक सैनिक थके और नींद युक्त ट्रॉय सैनिको का कत्लेआम करने लगते हैं. ट्रॉय सैनिक इसका मुकाबला नहीं कर पाते हैं. इसी दौरान जहाज वाले सैनिक भी आ जाते हैं और ट्रॉय शहर का विध्वंस करने लगते हैं. सुबह होते- होते ट्रॉय तहस नहस हो जाता है. रानी हेलन को सुरक्षित बचाकर ग्रीक उन्हें अपने साथ ले जाते हैं… “
लम्बी साँस भरते हुए मैं उठा और किताब को पलंग पर पटककर रसोई की और भागा।
रसोई में मेरे पापा और मेरी बड़ी बहन अक्षिता भी थी। मम्मी जी रोटी पका रही थी और अक्षिता बस बैठी जाने किस सोच में डूबी हुई थी। पापा तो पहले ही खाना शुरू कर चुके थे पर अक्षिता दीदी मेरे बिना तो कभी खाती ही नहीं थी।
मुझे देखते ही वो मेरी और पेनी नज़रों से देखकर बोली, “ओये अक्षू ! क्या कर रहा था तू। इतनी देर क्यों लगा दी।”
“मैं तो बस कहानी पढ़ रहा था। वो रानी हेलन वाली, वो घोड़े वाली … ”
“कौन सी, कहाँ से मिली तुझे”, यह बोलते समय वो काफी अजीब से व्यवहार कर रही थी।
मैने धीरे से उत्तर दिया, “पापा लाये हैं मुझे किताब।”
“नवोदय में जायेगा मेरा बेटा। तू तो उस समय मानी नहीं। अब अक्षू परीक्षा पास करके नवोदय जायेगा। उसी परीक्षा के लिए किताब लाया हूँ इसके लिए।”, पापा ने दीदी को चिड़ा कर कहा।
सच बताऊँ तो उस समय मेरा चेहरा देखने लायक था। मुझे कहाँ पता था कि सारा माज़रा क्या है। पर फ़िलहाल किसी और का चेहरा मुझसे ज्यादा देखने लायक था। अक्षिता दीदी का।
“अक्षू चला जायेगा, तब तो मैं अकेली हो जाउंगी। नहीं वो नहीं जायेगा।”, इतने गुस्से में मैंने उसे पहली बार देखा था।
वह मुझसे दूर कभी नहीं रहती थी। उस दिन से वह हमेशा बोलती रहती थी, वो नहीं जायेगा। मैं जाने नहीं दूंगी। और कुछ ऐसी ही बातें। पर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ता। खाना खाने के बाद में बिस्तर पर लेता। वो किताब बगल में पड़ी रही। मैंने उसे घुरा।
उसपर लिखा था , नवोदय एंट्रेंस एग्जाम , अभी उसे खोलने का मन नहीं था। मैं बस सोच रहा था।
भला मैं क्यों कहीं जाऊंगा। न मैंने कोई शरारत की थी और न ही ऐसा कुछ हुआ था जिसके लिए मुझे सज़ा दी जाये।
नहीं नहीं, पापा गुस्सा तो नहीं कर रहे। वो मुस्कुरा रहे थे। ठीक से बात भी कर रहे थे, और खुश ही नजर आ रहे थे। फिर दीदी इतनी चिंता क्यों कर रही है। मैं बस सोचता गया और सोचते सोचते सो गया।
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स्कूल में मेरे ज्यादा दोस्त तो नहीं थे। पर जो थे उनको इस किताब और नवोदय वगेरा के बारे में कुछ भी पता नहीं था। पंकित को चित्रों वाली वो पहेलियाँ बहुत पसंद आ गयी थी और शारदा तो उस किताब को घर ही ले जाना चाहती थी। किताब में दो ही चीज़ें इतनी रोचक थी , एक वो चित्रों वाली पहेलियाँ और बाकी बची कहानियां।
स्कूल में तो कुछ पता नहीं लगा था। अध्यापक तो होते ही डरावने हैं। क्या पता कब उनका मन हो और दो तमाचे दे मारें। सचमे मुझे उनसे बहुत डर लगता था। सो में छुट्टी होते ही घर की और चल पड़ा। अक्षिता दीदी भागकर हांफती हुई आयी, “कहाँ जा रहा है। तू तो अभी से मुझे भूल गया।”
दीदी भी मेरे स्कूल में थी, या शायद मैं उसके स्कूल में था। खेर, जिसका भी हो, क्या फर्क पड़ता है। फिलहाल और भी बहुत कुछ सोचने को है।
“दीदी, मुझे कहाँ भेज रहे हैं। और तुम क्यों नहीं आ रही”, दीदी चुप ही रही। वो उदास थी। पर मेरी तरफ नहीं देख रही थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। आखिर सब एकदम इतने अजीब व्यवहार क्यों कर रहे हैं। आज मैं पापा से पूछ ही लूंगा। जो भी हो, मुझे कहीं नहीं जाना है। बिना दीदी के तो बिलकुल नहीं। बिलकुल नहीं।
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Gopal Thakur says
Oh ! Vry nycccc…..
Ankush Anand says
Thanks