नजरों के सामने से उसका चेहरा,
खयाल ख्वाबों से उतरता नही,
हर रास्ता उसकी ओर जाता तो है,
पर कोई उसके पास से गुजरता नही।
खुशी में उसकी हर ज़ख्म भर आता है,
जैसे रात को चांद रौशन कर जाता है।
वो बहती नदी सी है,
ना-उमीद में जो उम्मीद भरदे,
वो जलती लौ सी है ,
जो सारा जहां चाहे तो रोशन करदे,
यूं ही दिन चलता रहता है,
जैसे आग में जलते हुए,
सूरज सा इंतजार समंदर के लिए,
होगी मुलाकात शायद दिन ढलते हुए।
रात यूं तो जाने कब बीत जाती है,
पर सुबह का वह स्वप्न ‘मुस्कुराहट’ दे जाता है,
नमी के साथ आता है ये खयाल कि
क्या कोई रास्ता है भी जो उसकी ओर ले जाता है।
कहां वक्त रहता है किसी बात का गम मनाने को,
कोई वजह – कोई शिकायत का मौका हम क्यों दें जमाने को।
बस यही काफी है,
हम दूर किनारे से उसका एक दीदार कर पाते हैं,
थोड़ा मुस्कुराकर, नजरें नीची करके, फिर आगे बढ़ जाते हैं।
© अंकुश आनंद
Mayan Guleria says
Wah! Bhai 👏👏